ज्योतिष शास्त्र
यथा शिखा मयुराणां नागानां मणयो यथा |
तद्वद्वेदाडंग शास्त्राणां ज्यौतिषं मूर्धनि स्थितम ||”
(वेदांग ज्योतिष,याजुष ज्योतिष ५)
जिस प्रकार से मयूरों के शिखा उनके शिरो देश में स्थित रहती है और जिस प्रकार से नागों की मणियां भी उनके सिरस्थ देश में स्थित रहती है, इस प्रकार वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र सबसे ऊपर स्थित है | ज्योतिष शास्त्र की महत्ता एवं उपयोगिता मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है | ग्रह -नक्षत्रों के द्वारा हमें काल का ज्ञान होता है एवं इस चराचर जगत में सबसे अधिक शाश्वत एवं गतिशील वस्तु काल ही है | इसी के अंतर्गत संसार के सभी क्रियाकलाप कार्यान्वित होते हैं | काल के अनुसार ही प्राणी मात्र का जन्म एवं अंत होता है | जैसा की वर्णन भी प्राप्त है:-
“काल: सृजति भूतानि, काल: संहरते प्रजा:||”
हमारी भारतीय संस्कृति में वेद विहित यज्ञादि शुभ कार्यो की समग्र व्यवस्था वेदांग शास्त्रों के माध्यम से संपादित होती है | जिसमें यज्ञादि कार्यो की सफलता शुभ कालाधीन तथा शुभ कालज्ञान की व्यवस्था ज्योतिष शास्त्राधीन होने की वजह से ही इसे वेद पुरुष के नेत्र रूप में प्रतिष्ठित किया गया है–
“वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्त: कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञ:|
तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञं ||
अतः ज्योतिष शास्त्र की सार्वभौम महत्ता तथा उपयोगिता स्वयं ही सिद्ध होती है | वर्तमान विज्ञान के गणित आदि प्राय: सभी विषय बीजस्वरूप ज्योतिष शास्त्र में अंतर्निहित है | भारतीय परंपरा के अनुसार इस प्राचीन वैज्ञानिक शास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है | ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने नारद जी को ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान प्रदान किया तथा नारद जी ने ज्योतिष शास्त्र का प्रचार प्रसार किया |
भारतीय दर्शन में कर्मवाद का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसके अनुसार संसार में प्राणी अनवरत कर्मों में ही निरत रहता है | वह चाह कर भी इससे अलग नहीं हो सकता, कर्म करने पर उसका फल अवश्य ही भोगना पड़ता है |आत्मा अजर एवं अमर है परंतु कर्म बंधन के फल स्वरुप उसे पुनर्जन्म लेना पड़ता है कर्म बंधन से मुक्ति केवल तभी मिल सकती है जब मनुष्य को आत्मज्ञान या ब्रह्म ज्ञान हो जाता है प्राणी के शुभ अशुभ कर्मों का फल उसे वर्तमान जीवन में कब कहां और किस रूप में प्राप्त होगा इत्यादि समस्त जिज्ञासाओं का उत्तर जानने का एकमात्र उपकरण ज्योतिष शास्त्र है, इसका मुख्य कार्य ग्रह, नक्षत्र की गति स्थिति अनुसार कुंडली निर्माण कर जातक के जीवन में आने वाले सुख- दुख का अनुमान कर उसे अपने कर्तव्य द्वारा अपने अनुकूल बनाने के लिए प्रेरित करना है यही प्रेरणा मानव के लिए दुखों को दूर करने का कार्य करती है एवं पुरुषार्थ साधक होती है|
दिवम एस्ट्रो वर्ल्ड

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