6 March 2025, by Divam astro world

दिनांक – 6 मार्च 2025

दिन – गुरुवार

विक्रम संवत् – 2081

अयन – उत्तरायण

ऋतु – बसन्त

मास – फाल्गुन

पक्ष – शुक्ल

तिथि – सप्तमी सुबह 10:50 तक तत्पश्चात अष्टमी

नक्षत्र – रोहिणी रात्रि 12:05 मार्च 07 तक तत्पश्चात मृगशिरा

योग- विष्कम्भ रात्रि 08:29 तक तत्पश्चात प्रीति

राहु काल – दोपहर 02:20 से दोपहर 03:48 तक

सूर्योदय – 07:00

सूर्यास्त – 06:41

दिशा शूल – दक्षिण दिशा में

ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:19 से 06:08 तक

अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:27 से दोपहर 01:15 तक

निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:26 मार्च 07 से रात्रि 01:15 मार्च 07 तक

व्रत पर्व विवरण – रोहिणी व्रत

विशेष – सप्तमी को ताड़ फल फल खाने से रोग बढ़ता है व शरीर का नाश होता है और अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च।

लक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ।।

‘हजारों अश्वमेध यज्ञ, सैकड़ों वाजपेय यज्ञ और लाखों बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल होता है, वही फल एक बार कुम्भ-स्नान करने से प्राप्त हो जाता है।’

तीर्थ में ये बारह नियम अगर कोई पालता है तो उसे तीर्थ का पूरा फायदा होता है:

(१) हाथों का संयम : गंगा में गोता भी मारा और अनधिकार किसीकी वस्तु ले ली या ऐसी-वैसी कोई चीज उठाकर मुँह में डाल ली तो पुण्यप्राप्ति का आनंद नहीं होगा ।

(२) पैरों का संयम: कहीं भी चले गये मौज-मजा मारने के लिए… नहीं, अनुचित जगह पर न जायें ।

(३) मन को दूषित विचारों व चिंतन से बचाकर भगवच्चिंतन करना ।

(४) सत्संग व वेदांत शास्त्र का आश्रय लेना : ऐसा नहीं कि शरीर में बुखार है और दे मारा गोता । पुण्यलाभ करें और फिर हो गया बुखार या न्यूमोनिया और आदमी मर गया, ऐसा नहीं करना चाहिए । देश,काल और शरीर की अवस्था देखनी चाहिए ।

(५) तपस्या।

(६) भगवान की कीर्ति, भगवान के गुणों का गान कुम्भ-स्थान पर करना चाहिए ।

(७) परिग्रह का त्याग : कोई कुछ चीज दे तो तीर्थ में दान नहीं लेना चाहिए । तीर्थ में दूसरों की सुविधाओं का उपयोग करके अपने ऊपर बोझा न चढ़ायें । दान का खाना, अशुद्ध खाना, प्रसाद में धोखेबाजी करके बार-बार लेना… अशुद्ध व्यवहार पुण्य क्षीण और हृदय को मलिन करता है । एक तरफ पुण्य कमा रहे हैं, दूसरी तरफ बोझा चढ़ा रहे हैं । यह न करें ।

(८) जैसी भी परिस्थिति हो, आत्मसंतोष होना चाहिए । हाय रे ! धक्का धक्की है, बस नहीं मिली… ऐसा करके चित्त नहीं बिगाड़ना । ‘हरे-हरे ! वाह ! यार की मौज ! तेरी मर्जी पूरण हो !’ – इस प्रकार अपने चित्त को संतुष्ट रखें ।

(९) किसी प्रकार के अहंकार को न पोसें: ‘मैं तो तीन बजे उठा था, मैं तो इतने मील पैदल गया और मैंने तो १० डुबकियाँ लगायीं…. – ऐसा अहंकार पुण्य को क्षीण कर देता है । भगवान की कृपा है जो पुण्यकर्म हुआ, उसको छुपाकर रखो ।

(१०) ‘यह करूँगा, यह भोगूँगा, इधर जाऊँगा, उधर जाऊँगा…. इसका चिंतन न करें । ‘मैं कौन हूँ ? जन्म के पहले मैं कौन था, अभी कौन हूँ और बाद में कौन रहूँगा ? तो मैं तो वही चैतन्य आत्मा हूँ । मैं जन्म के पहले था, अभी हूँ और बाद में भी रहूँगा ।’ – इस प्रकार अपने स्वभाव में आने का प्रयत्न करें ।

(११) दम्भ, दिखावा न करें ।

(१२) इन्द्रिय-लोलुपता नहीं । कुछ भी खा लिया कि मजा आता है, कहीं भी चले गये… तो मौज-मजा मारने के लिए कुम्भ-स्नान नहीं है । सच्चाई, सत्कर्म और प्रभु-स्नेह से तपस्या करके अंतरात्मा का माधुर्य जगाने के लिए और हृदय को प्रसन्नता दिलाने के लिए तथा सत्संग के रहस्य का प्रसाद पाने के लिए संगम-स्नान है ।”

हर गुरुवार को तुलसी के पौधे में शुद्ध कच्चा दूध गाय का थोड़ा-सा ही डाले तो, उस घर में लक्ष्मी स्थायी होती है और गुरूवार को व्रत उपवास करके गुरु की पूजा करने वाले के दिल में गुरु की भक्ति स्थायी हो जाती है ।

गुरुवार के दिन देवगुरु बृहस्पति के प्रतीक आम के पेड़ की निम्न प्रकार से पूजा करें :

एक लोटा जल लेकर उसमें चने की दाल, गुड़, कुमकुम, हल्दी व चावल डालकर निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए आम के पेड़ की जड़ में चढ़ाएं ।ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः ।फिर उपरोक्त मंत्र बोलते हुए आम के वृक्ष की पांच परिक्रमा करें और गुरुभक्ति, गुरुप्रीति बढ़े ऐसी प्रार्थना करें । थोड़ा सा गुड़ या बेसन की मिठाई चींटियों को डाल दें ।

गुरुवार को बाल कटवाने से लक्ष्मी और मान की हानि होती है ।

गुरुवार के दिन तेल मालिश हानि करती है । यदि निषिद्ध दिनों में मालिश करनी ही है तो ऋषियों ने उसकी भी व्यवस्था दी है । तेल में दूर्वा डाल के मालिश करें तो वह दोष चला जायेगा ।