
प्रेम क्या है?
उत्तर-
प्रेम न सीमित देह में,
न केवल रूप-रंग,यह तो आत्मा का स्वर है, अनहद गूँज अनंग।
प्रेम नहीं है लोभ का,
नहीं वासना का जाल,यह तो निर्मल सत्य है, शाश्वत, निष्कल, निःकाल।
प्रेम न लेता,
प्रेम तो सदा दान ही बने,अपने को अर्पण करे, और सब में रमने।
प्रेम वही जो देखे जग में ईश्वर का रूप,फूल,
शिला, शिशु, वृद्ध में पाए एक स्वरूप।
प्रेम वही जो आँसुओं को मोती बना दे,
घावों पर कोमल करुणा का मरहम सदा चढ़ा दे।
प्रेम वही जो टूटे हृदय को बाँध सके,
अंधकार में दीपक बन उजियारा ला सके।
प्रेम वही जो सत्य-पथ पर बढ़ने को कहे,
स्वार्थ छोड़ सबका दुख अपने हृदय में सहे।
प्रेम वही जो द्वेष को भी अपनत्व दे,नर-नारी,
जीव-जन्तु सबको स्नेह से भरे।
प्रेम वही जो राम का भरत संग बंधन,
प्रेम वही जो राधिका का श्याम पर अर्पण।
प्रेम न कोई व्यापार है, न ही सौदे का भाव,
यह तो आत्मा की धारा है, निर्मल और स्वाभाव।
प्रेम वही है सत्य का, करुणा का विस्तार,
अक्षयरुद्र भी मानता — यही जीवन आधार।
भाव लहरी –
प्रेम सुधा रस बरसता, हृदय बने उद्गार ।मन के सूखे बाग में, खिलें सदा फूलहार ॥
प्रेम अमृत की धार है, शीतल इसकी छाँव ।दुख के रेगिस्तान में, यही बने गुलबाग ॥
प्रेम जहाँ है वहाँ नहीं, कलह, ईर्ष्या, दाह ।प्रेम दीप जब जल उठा, मिटे अंधेरा-गाह ॥
प्रेम वही जो क्षमा करे, सबको गले लगाय ।द्वेष-दुश्मनी छोड़ कर, करुणा-माला गाय ॥
प्रेम हृदय का दीप है, जलता हरदम नित ।अंधकार को चीरकर, लाता उज्ज्वल स्मित ॥
प्रेम अनन्त समुद्र सा, लहरें अमृत-भार ।#अक्षयरुद्र कहे यही, जीवन का आधार ॥
प्रेम बिना जीवन अधूरा, जैसे बिना नीर ।मछली का तन सूखता, मनुज बिना अधीर ॥
प्रेम करुणा संग चले, सत्य साथ में राह ।प्रेमी बनकर जग में तू, बाँट सदा बस चाह ॥
प्रेम मनाता पर्व है, दिल में लाता आनन्द ।प्रेम रहित मानव यहाँ, जैसे बिना प्राण ॥
प्रेम जहाँ हो एकता, टूटे सब दरबान ।मजहब, जाति, भेद सब, मिटे वहीं पर जान ॥
प्रेम बने है साधना, योग और उपवास ।प्रेम वही जो दे सदा, जीवन को विश्वास ॥
प्रेम करे जब राम से, भरत हुए अनजान ।राज्य छोड़ वनधाम को, लिया उन्होंने मान ॥
प्रेम रहे राधा में, श्याम स्वरूप निहार ।भक्ति-सुमन से गूँजता, हर मंदिर, हर द्वार ॥
प्रेम वही जो पीर को, अपने मन में साध ।दुखी, दरिद्र, अनाथ में, देखे ईश्वर-बाद ॥
प्रेम बिना पूजा अधूरी, न फल दे उपवास ।प्रेम बिना माला जपे, सब कुछ है निष्फल खास ॥
प्रेम सुधा से भी मधुर, प्रेम अनूठा स्वाद ।प्रेम बिना जीवन लगे, जैसे सूना व्रज-ग्राम ॥
प्रेम खड़ा है द्वार पर, मन के भीतर झाँक ।खोलो दिल के किवाड़ को, मिटे अहंकार-फाँक ॥
प्रेम नहीं है स्वार्थ का, प्रेम अर्पण भाव ।लेने में सुख देखना, यह तो मन की दाव ॥
प्रेम बिना संसार में, रिश्ते होते खोख ।जैसे बंजर भूमि में, न उपजे अन्न-शोक ॥
प्रेम जहाँ है मित्रता, सच्चा जीवन-ज्ञान ।प्रेम बिना सब धूल है, जैसे मृगतृष्णा-पान ॥
प्रेम बने है दर्पण, दिखलाए निज रूप ।प्रेम बिना पहचान भी, रहती सदा अनूप ॥
प्रेम वही है साधना, प्रेम ही आराध्य ।प्रेम बिना संसार सब, केवल मोह-प्राय ॥
प्रेम ही जीवन-धन है, प्रेम ही आधार ।प्रेम बिना जग शून्य है, अक्षयरुद्र स्वीकार ॥
प्रेम अनंत प्रवाह है, सागर सा विस्तार ।जो डूबा इस प्रेम में, पार गया हर बार ॥
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