रत्न सबके लिए नहीं होता। वे प्राकृतिक वस्तु न वस्तु प्राणवान ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। लेकिन उनका चयन अपने लिए अपनी राशि के अनुसार करना चाहिए, अन्यथा रत्न किसी भी सीमा तक विपरीत प्रभाव डाल सकता है। रत्न बड़े प्रभावशाली होते हैं। यदि ज्योतिष व योगकारक रत्नों को उपयुक्त समय में रीति से जाग्रत कर धारण किया जाए तो मोटा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

रत्न विशेष की अंगूठी में स्थापित धातु में धारक धारण करने से विशेष लाभ होता है।

जानिए शुभ रत्न के अनुसार :-

मेष :- इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है एक शुक्ल पक्ष में किसी भी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका मूल धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ भयौ भौमाय नमः

लाभ :- मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है और रक्त, साहस और बल में वृद्धि होती है, महिलाओं के शीघ्र विवाह में सहयोग मिलता है, प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। बच्चों में नजर दोष दूर होता है। स्कॉर्पियो ( Scorpio) वाले भी इसे धारण कर सकते हैं।

वृषभ :-

इस कुंडली वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न हीरा और राजयोग कारक रत्न तितली है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः

लाभ :- हीरा धारण करने से स्वास्थ्य एवं साहस प्रदान करता है। विचारशील कार्य है। शीघ्र विवाह कराता है। अग्नि भय और चोरी से पूछताछ है। महिलाओं में गर्भपात के रोग दूर होते हैं। पुरुषों में वीर्य दोष होता है। कहा जाता है कि जिन महिलाओं के बेटे की इच्छा होती है उन्हें हीरा धारण नहीं करना चाहिए, जिन महिलाओं को बेटे की चाहत है या जिनके बेटे को संतान की चाहत है उन्हें परीक्षण के लिए हीरा धारण करना चाहिए। इसे तुला( Vergo) राशि वाले जातक भी धारण कर सकते हैं।

मिथुन राशि :-

इस लग्न वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न पन्ना है जिसे रविवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर लेना चाहिए।

मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः

लाभ :- पारिश्रमिक दूर कर शांति प्रदान करता है। गाँव में सफलता की दुकान है। खांसी और अन्य गले की प्रयोगशाला को दूर किया जाता है। चंचल चित्तब्रित्तियों को शांत करता है। इसे धारण करने से एकाग्रता विकसित होती है। काम, क्रोध आदि मानसिक विकारों को दूर करके अत्यंत शांति बनी हुई है। कन्या राशि वाले जातक भी इसे धारण कर सकते हैं।*

कर्क :-

इस लग्न वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न मोती है जिसे सोमवार के दिन प्रातः चंद्र की होरा में धारण करना चाहिए। सबसे पहले रत्न को इस मंत्र से जाग्रत कर लेना चाहिए।

मंत्र- ऊँ सों सोमाय नमः

लाभ :- मोती धारण करने से स्मरण शक्ति प्राप्त होती है। बल, विद्या और बुद्धि में वृद्धि होती है। क्रोध और मानसिक तनाव शांति होती है। इन्सोना, दांत और मूत्र रोग में लाभ होता है। यदि यह मूंगा भी धारण करता है तो अत्यंत लाभ देता है क्योंकि इस जातक का राजयोग कारक रत्न उत्पन्न होता है।

सिंह :-

इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न माणिक्य है। इसे रविवार को प्रातः रवि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ घृणि सूर्याय नमः

लाभ :- माणिक्य धारण करने से साहस में वृद्धि होती है। भय, दुःख और अन्य व्याधियों का नाश होता है। नौकरी में उच्चपद व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। अस्थि विकार और सिर दर्द की समस्या से संबंधित संबंध है।

कन्या :-

इस लग्न वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न पन्ना है जिसे रविवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर लेना चाहिए।

मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः।

लाभ :- पारिश्रमिक दूर कर शांति प्रदान करता है। गाँव में सफलता की दुकान है। खांसी और अन्य गले की प्रयोगशाला को दूर किया जाता है। चंचल चित्तब्रित्तियों को शांत करता है। इसे धारण करने से एकाग्रता विकसित होती है। काम, क्रोध आदि मानसिक विकारों को दूर करके अत्यंत शांति बनी हुई है। कन्या राशि वाले जातक भी इसे धारण कर सकते हैं। इस राशिफल के लिए पन्ना, हीरा, नीलकंठ रत्न शुभ होते हैं।

तुला :-

इस लग्न वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न हीरा और राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः।

लाभ :- हीरा धारण करने से स्वास्थ्य एवं साहस प्रदान करता है। विचारशील कार्य है। शीघ्र विवाह कराता है। अग्नि भय और चोरी से पूछताछ है। महिलाओं में गर्भपात के रोग दूर होते हैं। पुरुषों में वीर्य दोष होता है। कहा जाता है कि जिन महिलाओं के बेटे की इच्छा होती है उन्हें हीरा धारण नहीं करना चाहिए, जिन महिलाओं को बेटे की चाहत है या जिनके बेटे को संतान की चाहत है उन्हें परीक्षण के लिए हीरा धारण करना चाहिए। इस राशि वालो को लाभदायक हीरा, ओपल भी है।

वृश्चिक :-

इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है एक शुक्ल पक्ष में किसी भी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका मूल धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ ऐं भौमाय नमः।

लाभ :- मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है और रक्त, साहस और बल में वृद्धि होती है, महिलाओं के शीघ्र विवाह में सहयोग मिलता है, प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। बच्चों में नजर दोष दूर होता है।

धनु :-

इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है जिसे शुक्ल पक्ष के किसी भी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः

लाभ :- पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, यज्ञ और मान- सम्मान में वृद्धि होती है। पुत्र संत देता है। पापकर्म करने से पहले। अजीर्ण रोग, कैंसर व चर्मरोग से मुक्ति लाइब्रेरी है।

मकर :-

इस लग्न वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न नीलम है जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः

लाभ :- नीलमणि धारण करने से धन, सुख व धन में वृद्धि होती है। मन में सद्विचार प्रस्तुत है। संत सुख प्रदान करता है। वायु रोग, गठिया और हर्निया जैसे रोगों में लाभ मिलता है। इसे धारण करने के लिए पूर्व परीक्षण अवश्य करना चाहिए। धारण करने से पूर्व ज्योतिषाचार्या भावना जी से सलाह लें लेनी चाहिए।

कुंभ :-

इस लग्न वाले जातकों के लिए उपयुक्त नीलमणि है जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः

लाभ :- नीलमणि धारण करने से धन, सुख व धन में वृद्धि होती है। मन में सद्विचार प्रस्तुत है। संत सुख प्रदान करता है। वायु रोग, गठिया और हर्निया जैसे रोगों में लाभ मिलता है। इसे धारण करने के लिए पूर्व परीक्षण अवश्य करना चाहिए। धारण करने से पूर्व ज्योतिषाचार्या भावना जी से सलाह लें लेनी चाहिए।

मीन :-

इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है जिसे शुक्ल पक्ष के किसी भी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए।

मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः।

लाभ :- पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, यज्ञ और मान- सम्मान में वृद्धि होती है। पुत्र संत देता है। पापकर्म करने से पहले। अजीर्ण रोग, कैंसर व चर्मरोग से मुक्ति लाइब्रेरी है।

मिथुन, कन्या, वृश्चिक, धनु, कुंभ व मीन राशि वाले जातक पुखराज धारण कर सकते हैं।

वृषभ, कर्क, सिंह, तुला और मकर राशि वाले जातक पुखराज धारण न करें तो अच्छा है।

मेष राशि वाले जातकों को भी वर्जित है लेकिन यदि गुरु जन्म कुंडली के प्रथम, पंचम व नवम भावस्थ हो तो धारण करें, अच्छा है। जिस कन्या का विवाह न हो रहा हो उसे एक समान बनाए रखना चाहिए लेकिन उसका स्वभाव या राशि, धनु या मीन होना चाहिए।

मेष, वृश्चिक: (मंगल) मूंगा सोना माणिक्य, मोती, पुखराज पन्ना।

रत्न रत्नी रत्न स्वामी ग्रह रत्न धातु मित्र रत्न शत्रु रत्न

वृषभ, तुला: (शुक्र) हीरा सोना पन्ना, निक्कील माणिक्य, मोती।

मिथुन, कन्या: ( बुध) पन्ना सोना/ कांस माणिक्य, हीरा, मोती।

कर्क: (चंद्रमा) मोती चांदी माणिक्य, पन्ना।

सिंह: (सूर्य) माणिक्य सीसा मोती, मूंगा, पुरखराज माणिक्य, मोती, मूंगा।

मकर, कुंभ: (शनि) नीलमणि लोहा/सीसा पन्ना, हीरा माणिक्य, मोती, मूंगा।

धनु, मीन: (गुरु) पुखराज सोना/चांदी मोती, मूंगा, माणिक्य हीरा, नीला।

रत्न धारण करने में हाथ का चयन :- चिकित्सा शास्त्र का सिद्धांत है कि पुरुष का दाहिना हाथ और महिला का बाया हाथ गर्म होता है। इसी प्रकार पुरुष का बायाँ हाथ और स्त्री का दाँया हाथ ठंडा होता है। रत्न भी अपनी प्रकृति के अनुसार ठंडे और गर्म होते हैं। यदि ठंडा रत्न, ठंडे हाथ में व गर्म रत्न गर्म हाथ में धारण करें तो आशातीत लाभ होता है।

प्रकृति के अनुसार गर्म रत्न – पुखराज, हीरा, माणिक्य, मूंगा।

प्रकृति के अनुसार शीत रत्न – मोती, पन्ना, निक्कल, गोमेद, लहसुनिया।

रत्न प्रतिबंध :- रत्न को धारण करने के बाद रत्न को प्रतिबंधित रखना चाहिए। अनुष्ठान स्थान, दाह-संस्कार आदि में रत्न धारण नहीं करना चाहिए। यदि उक्त स्थान में जाना हो तो उसे देव-स्थान में छोड़ा जाना चाहिए तथा पुनः निर्धारित समय में धारण किया जाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि रत्न शुक्ल पक्ष के दिन निर्धारित वार की होरा में रखें। खंडित रत्न कदापि धारण नहीं करना चाहिए।


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