
श्री पद्मा एकादशी महत्व विधि एवं कथा
परिवर्तिनी (पद्मा) एकादशी का व्रत कल 03 सितंबर को रखा जाएगा। यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन व्रत करने से आपके सभी कष्ट दूर होते हैं। परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कहा जाता है। परिवर्तिनी एकादशी का व्रत कल 03 सितंबर बुधवार को रखा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने और व्रत करने से आपको सभी पापों से मुक्ति मिलने के साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु पाताललोक में चातुर्मास की योग निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी और पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। आइए आपको बताते हैं परिवर्तिनी एकादशी की तिथि कब से कब तक हैं और किस दिन व्रत रखना शास्त्र सम्मत होगा।
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि कब से कब तक
परिवर्तिनी एकादशी तिथि का आरंभ 03 सितंबर बुधवार को देर रात 03 बजकर 53 मिनट से होगा और और यह 04 सितंबर गुरुवार को प्रातः 04 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 03 सितंबर को रखा जाएगा। पारण 04 सितंबर को सुर्योदय के उपरांत किया जाएगा।
पद्मा एकादशी का महत्व
पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को ‘नारा’ कहा है। वह नारा ही भगवान का अयन-निवास स्थल है इसलिए वे नारायण कहलाते हैं। नारायण स्वरूप भगवान विष्णु सर्वत्र व्यापक रूप में विराजमान हैं। वे ही मेघ स्वरूप होकर वर्षा करते हैं। वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवन धारण करती है। श्रीविष्णु देवशयनी एकादशी से योग निद्रा में चले जाते हैं और भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन वे अपनी करवट बदलते हैं। इस एकादशी को पद्मा, परिवर्तिनी, वामन एकादशी या डोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलने के समय प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं, इस अवधि में भक्तिभाव और विनयपूर्वक उनसे जो कुछ भी मांगा जाता है वे अवश्य प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन माता यशोदा ने जलाशय पर जाकर श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे,इसी कारण इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। मंदिरों में इस दिन भगवान श्रीविष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम को पालकी में बिठाकर पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ शोभा यात्रा निकाली जाती है।
एकादशी पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार पद्मा एकादशी के दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान करते हुए उन्हें पचांमृत से स्नान करवाएं। इसके पश्चात गंगाजल से स्नान करवाकर कुमकुम-अक्षत, पीले पुष्प, चन्दन, तुलसी पत्र आदि से श्री हरि की पूजा करें। वामन भगवान की कथा का श्रवण या वाचन करने के बाद दीपक से आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें। पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें। शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिर अथवा उनकी मूर्ति के समक्ष भजन-कीर्तन करना शुभ माना गया है।
पद्मा एकादशी का महत्व
इस एकादशी पर भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति तो होती ही है। परलोक में भी इस एकादशी के पुण्य से उत्तम स्थान मिलता है। पद्मा एकादशी के विषय में शास्त्र कहता है कि इस दिन छाता,जूते, चावल, दही,जल से भरा कलश एवं चांदी का दान करना उत्तम फलदायी होता है। जो लोग किसी कारणवश पद्मा एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें पद्मा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा का पाठ करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम एवं रामायण का पाठ करना भी इस दिन उत्तम फलदायी माना गया है।
ये मिलता है फल
धर्मग्रंथों के अनुसार, पद्मा एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है उसके समस्त पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
व्रत कथा..
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की का नाम, देवता और पूजाविधि के बारे में पूछा। तब कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई, जिसे ब्रह्माजी ने महात्मा नारद को कहा था। नारद ने ब्रह्माजी से पूछा – विष्णुजी की आराधना के लिए मैं आपसे जानना चाहता हूं कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी कौन-सी होती है? ब्रह्माजी ने कहा- आपने मुझे उत्तम प्रश्न किया है। भादो माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा के नाम से जाना जाता है। उस दिन भगवान ह्रषीकेश की पूजा की जाती है। सूर्यवंश में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्यप्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि (जो राजा और ऋषि दोनों हों) हो गए हैं। उनके राज्य में अकाल नहीं पड़ता था। प्रजा को मानसिक चिंताएं नहीं सताती थीं और व्याधियों का प्रकोप भी नहीं होता था। उनकी प्रजा निर्भय और आर्थिक रूप से धन-समृद्ध थी। महाराज के कोष में केवल ईमानदारी से अर्जित धन का ही संग्रह था। उनके राज्य में समस्त वर्णों और आश्रमों के लोग अपने-अपने धर्म में लगे रहते थे। मान्धाता के राज्य की भूमि कामधेनु के समान फल देने वाली थी। उनके राज्यकाल में प्रजा का जीवन काफी सुखमय था।एक बार किसी कर्म के फलभोग के कारण राजा के राज्य में तीन वर्षों तक बारिश नहीं हुई। जिससे भूख से पीड़ित प्रजा नष्ट होने लगी। प्रजा महाराज के पास आकर कहने लगी कि आपको प्रजा की बात सुननी चाहिए। जल भगवान का निवास स्थान है। इसलिए वे नारायण कहलाते हैं। नारायणस्वरूप भगलावन विष्णु सर्वव्यापी है। वे ही मेघस्वरूप होकर वर्षा करते हैं और वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवित रहती है। महाराज, इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है, अतः कोई उपाय कीजिए।राजा ने कहा कि आपने सही कहा है,अन्न को ब्रह्म कहा गया है। अन्न से ही प्राणी जीवित रहता है। पुराण में भी विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है लेकिन जब में विचार करता हूं, तो मुझे इसमें मेरे कोई अपराध नहीं नजर आते हैं। फिर भी प्रजा के हित में पूरा प्रयास करुंगा।ऐसा निश्चय करके राजा मन्धाता कुछ व्यक्ति को साथ लेकर भगवान को प्रणाम करने वनों की ओर चल पड़े। वहां मुनियों और तपस्वियों से मिले। एक दिन उन्हें ब्रह्मपुत्र अंगिरा के दर्शन हुए। उनको देखते ही राजा ने दोनों हाथ जोड़कर मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनि ने भी राजा का अभिनन्दन स्वीकार किया और राज्य के बारे में पूछा। राजाना ने प्रजा का हाल बताकर मुनि के स्वास्थ्य के बारे में पूछा। मुनि ने राजा को आसन और अर्ध्य दिया। मुनि ने राजा के आने का कारण पूछा, तो राजा ने बताया की मेरे राज्य में सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन किसी कारणों से वर्षा का अभाव हो गया है। इसकी वजह मुझे नहीं पता है।ऋषि अंगिरा बोले सत्ययुग सबसे उत्तम युग है। इसमें लोग परमात्मा के चिंतन में लगे रहते हैं । इस युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं। तुम्हारे राज्य में एक शूद्र तपस्या करता है और इसकी कारण वर्षा नहीं होती है। तुम इसके प्रतिकार में यज्ञ करो, जिससे यह दोष शांत हो जाए।राजा ने कहा, मुनिवर, एक तो वह तपस्या में लगा है और उसका कोई अपराध भी नहीं है। इसलिए मैं उसकी तपस्या अवरोध नहीं उत्पन्न करुंगा। आप दोष को शांत करने वाले किसी धर्म का उपदेश कीजिए। फिर ऋषि ने कहा कि ऐसी बात है, तो एकादशी का व्रत करो। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम से एकादशी होती है। इस व्रत के प्रभाव से निश्चित ही समस्या का हल मिलेगा और तुम अपनी प्रजा और परिवार के सदस्यों के साथ इसका व्रत कर सकते हो। ऋषि का ये वचन सुनकर राजा वापस घर लौट आए और चारों वर्णों के प्रजा के साथ मिलकर भादों माह के शुक्ल पक्ष का पद्मा एकादशी व्रत रखा। इस व्रत से राज्य में बारिश होने लगी और हरी-भरी खेती से पृथ्वी सुशोभित होने लगी।प्रभु श्रीकृष्ण ने कहा कि युधिष्ठिर इस कारण पद्मा यानी परिवर्तिनी एकादशी व्रत का करना चाहिए। इस व्रत कथा को पढ़ने और सुनने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है।
एकादशी तिथि के अवसर पर की गई गौसेवा का फल अक्षय होता है। गौमाता की सेवा से ही गोपाल प्रसन्न होते हैं एवं पितृ देव तृप्त होते हैं। कल “पद्मा (परिवर्तनी) एकादशी” तिथि के अवसर पर यथा संभव गौसेवा करके पुण्यलाभ अर्जित करें..
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