होलिका दहन 2025,Holika dahan 2025, by Divam astro world

त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत हिंदु धर्म का एक अविभाज्य अंग :-इनको मनाने के पीछे कुछ विशेष नैसर्गिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण होते हैं तथा इन्हें उचित ढंग से मनाने से समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में अनेक लाभ होते हैं । इससे पूरे समाज की आध्यात्मिक उन्नति होती है । इसीलिए त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत मनाने का शास्त्राधार समझ लेना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ।

होली भी संक्रांति के समान एक देवी हैं । षड्विकारों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता होलिका देवी में है । विकारों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होने के लिए होलिका देवी से प्रार्थना की जाती है । इसलिए होली को उत्सव के रूप में मनाते हैं ।

होली के पर्व पर अग्निदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का कारण होली यह अग्निदेवता की उपासना का ही एक अंग है :-अग्निदेवता की उपासना से व्यक्ति में तेजतत्त्व की मात्रा बढने में सहायता मिलती है । होली के दिन अग्निदेवता का तत्त्व २ प्रतिशत कार्यरत रहता है । इस दिन अग्निदेवता की पूजा करने से व्यक्ति को तेजतत्त्व का लाभ होता है । इससे व्यक्ति में से रज-तम की मात्रा घटती है । होली के दिन किए जानेवाले यज्ञों के कारण प्रकृति मानव के लिए अनुकूल हो जाती है । इससे समय पर एवं अच्छी वर्षा होनेके कारण सृष्टिसंपन्न बनती है । इसीलिए होलीके दिन अग्निदेवता की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । घरों में पूजा की जाती है, जो कि सुबह के समय करते हैं । सार्वजनिक रूपसे मनाई जाने वाली होली रात में मनाई जाती है ।

पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वों की सहायतासे देवता के तत्त्व को पृथ्वी पर प्रकट करने के लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वी पर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समय के प्रथम त्रेतायुग में पंचतत्त्वों में विष्णुतत्त्व प्रकट होने का समय आया । तब परमेश्वर द्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियों को स्वप्नदृष्टांत में यज्ञ के बारे में ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञ की सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारदमुनि के मार्गदर्शनानुसार यज्ञ का आरंभ हुआ । मंत्रघोष के साथ सबने विष्णुतत्त्व का आवाहन किया । यज्ञकी ज्वालाओं के साथ यज्ञकुंड में विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वी पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होने लगा । उनमें भगदड मच गई । उन्हें अपने कष्टका कारण समझ में नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूपसे प्रकट हुए । ऋषि-मुनियों के साथ वहां उपस्थित सभी भक्तों को श्री विष्णुजी के दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुग के प्रथम यज्ञ के स्मरण में होली मनाई जाती है ।

होली के संदर्भ में शास्त्रों एवं पुराणों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं–होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।

भविष्यपुराण में एक कथा है । प्राचीन काल में ढुंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी एक गांव में घुसकर बालकों को कष्ट देती थी । वह रोग एवं व्याधि निर्माण करती थी । उसे गांव से निकालने हेतु लोगों ने बहुत प्रयत्न किए; परंतु वह जाती ही नहीं थी । अंत में लोगों ने अपशब्द बोलकर, श्राप देकर तथा सर्वत्र अग्नि जलाकर उसे डराकर भगा दिया । वह भयभीत होकर गांव से भाग गई । इस प्रकार अनेक कथाओं के अनुसार विभिन्न कारणों से इस उत्सव को देश-विदेश में विविध प्रकार से मनाया जाता है ।

प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमा से पंचमी तक पांच-छः दिनों में, कहीं तो दो दिन, तो कहीं पांचों दिन तक यह त्यौहार मनाया जाता है ।

होली का संबंध मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन से है, साथ ही साथ नैसर्गिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कारणों से भी है । यह बुराई पर अच्छाई की विजयका प्रतीक है । दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारोंका नाश कर, सद्प्रवृत्ति का मार्ग दिखाने वाला यह उत्सव है। अनिष्ट शक्तियों को नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करने का यह दिन है । आध्यात्मिक साधना में अग्रसर होने हेतु बल प्राप्त करनेका यह अवसर है । वसंत ऋतुके आगमन हेतु मनाया जानेवाला यह उत्सव है । अग्निदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका यह त्यौहार है ।

कई स्थानों पर होली का उत्सव मनाने की सिद्धता महीने भर पहले से ही आरंभ हो जाती है । इसमें बच्चे घर-घर जाकर लकडियां इकट्ठी करते हैं । पूर्णमासी को होली की पूजा से पूर्व उन लकडियों की विशिष्ट पद्धति से रचना की जाती है । तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है । पूजा करनेके उपरांत उसमें अग्नि प्रदीप्त (प्रज्ज्वलित) की जाती है । होली प्रदीपन की पद्धति समझने के लिए हम इसे दो भागों में विभाजित करते हैं, १. होलीकी रचना तथा २. होलीका पूजन एवं प्रदीपन

होली की रचना के लिए आवश्यक सामग्री -अरंड अर्थात कैस्टरका पेड, माड अर्थात कोकोनट ट्री, अथवा सुपारीके पेडका तना अथवा गन्ना । ध्यान रहें, गन्ना पूरा हो । उसके टुकडे न करें । मात्र पेड़ का तना पाॅंच अथवा छः फुट लंबाईका हो । गायके गोबर के उपले अर्थात ड्राइड काऊ डंग, अन्य लकड़ियाॅं ।• होली के रचना की प्रत्यक्ष कृति सामान्यत: ग्रामदेवता के देवालय के सामने होली जलाऍं । यदि संभव न हो, तो सुविधाजनक स्थान चुनें । जिस स्थानपर होली जलानी हो, उस स्थानपर सूर्यास्तके पूर्व झाड़ू लगाकर स्वच्छ करें । बादमें उस स्थान पर गोबर मिश्रित पानी छिडके । अरंडी का पेड, माड अथवा सुपारी के पेड का तना अथवा गन्ना उपलब्धताके अनुसार खडा करें । उसके उपरांत चारों ओर उपलों एवं लकड़ियोंकी शंकुसमान रचना करें । उस स्थानपर रंगोली बनाएं । यह रही होली की शास्त्रके अनुसार रचना करने की उचित पद्धति।

होली की रचना करते समय उसका आकार शंकुसमान होने का शास्त्राधार होली का शंकुसमान आकार इच्छाशक्ति का प्रतीक है।

होली की रचना में शंकुसमान आकार में घनीभूत होने वाला अग्निस्वरूपी तेजतत्त्व भूमंडलपर आच्छादित होता है । इससे भूमिको लाभ मिलने में सहायता होती है । साथ ही पाताल से भूगर्भ की दिशा में प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंसे भूमिकी रक्षा होती है ।

होली की इस रचना में घनीभूत तेज के अधिष्ठान के कारण भूमंडल में विद्यमान स्थानदेवता, वास्तुदेवता एवं ग्रामदेवता जैसे देवताओं के तत्त्व जागृत होते हैं । इससे भूमंडल में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों के उच्चाटन का कार्य सहजता से साध्य होता है।

शंकु के आकार में घनीभूत अग्निरूपी तेज के संपर्क में आने वाले व्यक्ति की मनःशक्ति जागृत होनेमें सहायता होती है । इससे उनकी कनिष्ठ स्वरूप की मनोकामना पूर्ण होती है एवं व्यक्तिको इच्छित फलप्राप्ति होती है ।

होली में अर्पण करने के लिए मीठी रोटी बनाने का शास्त्रीय कारण :

होलिका देवीको निवेदित करने के लिए एवं होली में अर्पण करने के लिए उबाली हुई चने की दाल एवं गुड़ का मिश्रण, जिसे महाराष्ट्र में पुरण कहते हैं, यह भरकर मीठी रोटी बनाते हैं । इस मीठी रोटी का नैवेद्य होली प्रज्वलित करनेके उपरांत उसमें समर्पित किया जाता है । होलीमें अर्पण करनेके लिए नैवेद्य बनानेमें प्रयुक्त घटकों में तेजोमय तरंगों को अतिशीघ्रता से आकृष्ट, ग्रहण एवं प्रक्षेपित करने की क्षमता होती है । इन घटकों द्वारा प्रक्षेपित सूक्ष्म वायु से नैवेद्य निवेदित करनेवाले व्यक्ति की देह में पंचप्राण जागृत होते हैं । उस नैवेद्य को प्रसादके रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति में तेजोमय तरंगों का संक्रमण होता है तथा उसकी सूर्य नाड़ी कार्यरत होनेमें सहायता मिलती है । सूर्य नाड़ी कार्यरत होने से व्यक्ति को कार्य करने के लिए बल प्राप्त होता है।

होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है.

होलिका दहन पूजा की विधि (Holika dahan puja vidhi)

होलिका दहन की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करना जरूरी है।

स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर या पूरब दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं।

पूजा करने के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाएं।

पूजा की सामग्री के लिए रोली, फूल, फूलों की माला, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी,.मूंग, बताशे, गुलाल नारियल, 5 से 7 तरह के अनाज और एक लोटे में पानी रख लें। इसके बाद इन सभी पूजन सामग्री के साथ पूरे विधि-विधान से पूजा करें। मिठाइयां और फल चढ़ाएं।

होलिका की पूजा के साथ ही भगवान नरसिंह की भी विधि-विधान से पूजा करें और फिर होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें।

होलिका दहन शुभ मुहूर्त में ही करें. भद्रा मुख और राहुकाल के दौरान होलिका दहन करना शुभ नहीं माना जाता है.

होलिका दहन करते समय महिलाएं इस बात का ख्याल रखें कि सिर को खुला ना रखें, कोई ना कोई कपड़ा जरूर सिर पर रखकर पूजा करें.

होली के दिन भोजन करते समय आपका मुंह दक्षिण दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए.

इस दिन शुद्ध सात्विक भोजन का सेवन ही करना चाहिए.

ध्यान रहे कि इस दिन बुजुर्गों का अनादर नहीं करना चाहिए.

इस दिन देर रात तक घर से बाहर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इस दिन रात के समय नकारात्मक शक्तियां काफी सक्रिय रहती हैं.

उधार पैसा- होलिका दहन पर कभी किसी से रुपया-पैसा उधार नहीं लेना चाहिए. ऐसा कहते हैं कि जो लोग इस दिन रुपए-पैसे का लेन-देन करते हैं, उन्हें हमेशा कंगाली घेरे रहती है. इससे घर की सुख-संपन्नता में भी कमी आती है. इसलिए ये गलती बिल्कुल न करें.

ऐसा कहते हैं कि जिन लोगों के पास केवल एक पुत्र है, उन्हें होलिका दहन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करनी चाहिए. हालांकि जिन लोगों के पास एक पुत्र और एक पुत्री है, वे होलिका दहन कर सकते हैं.

सफेद चीजों से परहेज- होलिका दहन के दिन सफेद चीजों को खाने से परहेज करना चाहिए. इस दिन सफेद चीजों का सेवन अच्छा नहीं माना जाता है. होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा को किया जाता है और इस दिन सफेद चीजें नकारात्मक शक्तियों को जल्दी आकर्षित करती हैं. इसलिए सफेद मिठाई, खीर, दूध, दही या बताशा आदि से परहेज करें.

इन पेड़ों की लकड़ी न जलाएं- होलिका दहन में झाड़ या सूखी लकड़ियां जलाई जाती हैं. इसमें कभी भी आम, वट और पीपल की लकड़ी नहीं जलानी चाहिए.

माता का अपमान- इस दिन भूलकर भी अपनी माता का अपमान नहीं करना चाहिए.

ऐसा करने से आपको अशुभ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. कहते हैं कि होलिका दहन के दिन माता का अपमान करने से जीवन में दरिद्रता आती है. इस दिन सुबह उठकर अपनी माता के चरण स्पर्श करें और उनसे आशीर्वाद लें. आप चाहें तो माता को कोई अच्छा सा उपहार भी लाकर दे सकते हैं.

कुछ बहुत सरल उपाय होली पर करने वाले जो साल भर खुशहाली और तरक्की दे सकते है:-

(1)घर के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में देशी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। होली की ग्यारह परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए। इससे सुख-समृद्धि बढ़ती है, कष्ट दूर होते हैं।

(2)होली की सुबह बेलपत्र पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर अपनी मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर सच्चे मन से अर्पित करें। किसी मंदिर में शंकर जी को पंचमेवा की खीर चढ़ाएं, मनोकामना पूरी होगी।

(3)अगर आप अपने घर में नकारात्मक ऊर्जा से परेशान हैं। बिना बात के पति-पत्नी में कलह हो रहा हो और हर दिन किसी मुसीबत का सामना करना पड़ता हो और घर में कोई बीमार हो ठीक होने में समय लग रहा हो तो आप यह उपाय जरूर आजमाएं। जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी-सी अग्नि ले आएं। फिर अपने घर के आग्नेय कोण में उस अग्नि को तांबे या मिट्टी के पात्र में रखें। सरसों के तेल का दीपक जला दें इस उपाय से घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा जलकर समाप्त हो जाएगी।

(4)होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। यदि आप के ऊपर कोई टोना जादू नज़र ऊपरी फेर आदि लगा होगा या पहले से ही कोई टोटका होगा तो वह सब खत्म हो जाएगा।

(5)होली दहन के दूसरे दिन होली की राख को घर लाकर उसमें थोडी सी राई व नमक मिलाकर रख लें। इस प्रयोग से भूतप्रेत या नजर दोष से मुक्ति मिलती है।

(6)सेहत बार-बार खराब होती हो तो होलिका दहन के बाद उसकी बची राख यानि भभूत को रोगी के तकिये के नीचे रख दें। इस उपाय को करने से पुरानी से पुरानी बीमारी ठीक हो जाएगी।

(7)यदि पैसों की बचत न हो पा रही हो तो होलिका दहन के दूसरे दिन कि बची राख को किसी लाल रूमाल में बांध लें और उसे अपनी तिजोरी या पर्स में रख लें. इस टोटके से आपको फायदा मिलेगा।

(8)यदि आपको व्यापार व नौकरी में परेशानी आ रही हो तो होलिक दहन के बाद एक जटा वाला नारियल मंदिर या होलिका दहन वाली जगह पर जरूर चढ़ाएं।

(9)होलिका दहन के अगले दिन होलिका की राख से पुरुष तिलक लगाएं और स्त्रियां ये राख अपनी गर्दन पर लगाएं। इस उपाय से सभी प्रकार की बुरी नजर से रक्षा होती है।

(10)होली दहन के समय परिवार के सभी सदस्यों को होलिका की तीन या सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करते समय होलिका में चना, मटर, गेहूं, अलसी डालना चाहिए। ऐसा करने पर स्वास्थ्य लाभ के साथ ही धन लाभ होने के योग भी बनते हैं।

(11)संतान प्राप्ति के लिए होलाष्टक में आपको लड्डु गोपाल की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। पूजा के दौरान गाय के शुद्ध घी और मिश्री से हवन करना चाहिए।(108 आहुति डाले)

(12)आप करियर में तरक्की चाहते हैं तो आपको होलाष्टक में जौ, तिल और शक्कर से हवन कराना चाहिए।(36 आहुति)

(13)धन-संपत्ति में वृद्धि के लिए होलाष्टक में आपको कनेर के फूल, गांठ वाली हल्दी, पीली सरसों और गुड़ से हवन कराना चाहिए।(54 आहुति डाले)

(14)असाध्य रोग से मुक्ति पाने के लिए होलाष्टक में भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराना उत्तम माना गया है। उसके बाद गुग्गल से हवन कराना जरूरी है।(108 आहुति डाले)

होलिका दहन पर क्या करें( Holika dehan ke din kya kare)२०२५ वर्ष रशिफल

होलिका दहन पर होलिका की सात बार परिक्रमा करके उसमें मिठाई, उपले, इलायची, लौंग, अनाज, आदि डालना शुभ होता है.

होलिका दहन के बाद परिवार के लोगों के साथ चंद्र दर्शन करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपने पिता बुध की राशि में और सूर्य अपने गुरु बृहस्पति की राशि में स्थित रहते हैं.

होलिका दहन के दिन व्यक्ति को अपने परिवार सहित गेहूं और गुड़ से बनी रोटी खानी चाहिए.

होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले से ढक दिया जाता है. इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन डाले जातें है. ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और सारी बुरी बलाएं इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं. होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं.

सतयुग मे असुर राज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी.हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद जी को भक्ति से विमुख करने के लिए 8 दिनो तक लगातार भयंकर यातनाएं दी लेकिन उसे सफलता प्राप्त नही हुई तभी से इन 8 दिनो होलाष्टक को अशुभ माना जाता है। अंतत: बालक प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती. भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई. अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ।तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मे यह त्यौहार मनाया जाता है।

होली के दिन वास्तु के कुछ आसान उपाय करने से बड़ा लाभ मिलता है। जो आपके घर मे खुशहाली और समृद्धि लेकर आ सकते हैं.

1. होली के दिन घर में भगवान श्रीकृष्ण और राधा की तस्वीर लाने से शुभता बढ़ती है. इस तस्वीर को आप अपने मंदिर या बेडरूम में लगा सकते हैं. कृष्ण-राधा की तस्वीर लाने के बाद सबसे पहले फूल और गुलाल अर्पित करें और फिर उसे वास्तु के हिसाब से घर में स्थान दें.

2. किसी कार्य में सफलता पाने के लिए होली पर घर या कार्यस्थल पर पूर्व दिशा में उगते सूर्य तस्वीर लगाएं. ऐसा करने से आपका भाग्योदय होगा और जीवन की तमाम बाधाएं खुद-ब-खुद दूर होती चली जाएंगी.

3. पौधे घर में गुडलक लेकर आते हैं. अगर होली जैसे शुभ अवसर पर आप अपने घर या बेडरूम के लिए कुछ पौधे लें आएं तो इससे ग्रह दोष खत्म हो सकता है. आप तुलसी, मनीप्लांट या कोई भी इंडोर प्लांट घर लेकर आ सकते हैं.

4. घर के शीष पर लगे ध्वज को बदलने के लिए होली सबसे अच्छा समय माना जाता है. घर में लगा ध्‍वज परिवार में मान-सम्‍मान, सुख-समृद्धि लाता है.

5. होली के त्योहार पर गणेश जी की पूजा करके उन्‍हें ठंडई का भोग लगाने से घर-परिवार में खुशियां आती हैं. घर के लोगों की किस्‍मत साथ देने लगती है. उनका नसीब खुल जाता है।

होलाष्टक के समय विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि इन दिनों को धर्म और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है, लेकिन मांगलिक कार्यों के लिए नहीं। होलाष्टक में क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए:

1. ध्यान और पूजा: यह समय भगवान विष्णु और भगवान नरसिंह की पूजा और ध्यान के लिए शुभ माना जाता है।

2. दान-पुण्य: जरूरतमंदों को अनाज, वस्त्र, और धन का दान करना शुभ फलदायक हो सकता है।

3. संयम और साधना: अपनी ऊर्जा को सकारात्मक कार्यों में लगाएं और साधना तथा भक्ति में समय बिताएं।

4. प्रह्लाद कथा सुनें: यह कथा प्रेरणा देती है और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है।

1. मांगलिक कार्य: विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्य इस समय नहीं किए जाते हैं।

2. झगड़े और विवाद: इस समय शांत और सकारात्मक रहना उचित होता है।

3. व्यसनों से बचें: मद्यपान, तंबाकू, या अन्य बुरी आदतों से दूरी बनाकर रखें।

4. दोषपूर्ण व्यवहार: अहंकार, क्रोध और हिंसा से बचें।यह समय आत्ममंथन और साधना के लिए उपयुक्त है।